वक्फ संशोधन बिल पर समर्थन से JDU में खलबली .

वक्फ बिल संशोधन मसले पर जदयू छोड़ सकते हैं गुलाम गौस, कई अन्य मुस्लिम नेता भी कतार में

वक्फ संशोधन बिल पर समर्थन से JDU में खलबली .

वक्फ बिल संशोधन का मुद्दा बिहार की सियासत में बड़ा बदलाव ला सकता है। इस वक्त जब आप यह वीडियो देख रहे होंगे, तब संसद में वक्फ बिल को पेश किया गया होगा, या उसपर बहस चल रही होगी। हो सकता है कि इसे पास या खारिज भी किया जा चुका हो। इस बिल के पारित होने न खारिज होने का बड़ा असर पूरे देश के साथ बिहार पर भी पड़ेगा। वोट नए सिरे से बटेंगे और सभी पार्टियों के लिए नफा नुकसान का आकलन शुरू होगा। लेकिन इससे सबसे बड़ा जिस पार्टी को होगा, वो है जनता दल यूनाइटेड यानी नीतीश कुमार की पार्टी।

मुस्लिम वोटर इस बार निर्णायक रहेंगे

हम शुरु से ही यह कहते आए हैं कि बिहार के मुस्लिम वोटर इस बार निर्णायक रहेंगे और उनका बड़ा शिफ्ट देखने को मिल सकता है। जदयू और भाजपा के साथ आने से जदयू के मुस्लिम वोट तो पहले ही खिसक गए थे, अब इस बिल के बाद जो कुछ प्रतिशत वोट जदयू के बचे हैं, वो भी हाथ से चले जाएंगे। और जदयू के लिए सबसे बड़ा नुकसान यह है कि एमएलसी गुलाम गौर सहित कुछ और मुस्लिम नेता पार्टी छोड़ सकते हैं। गुलाम गौस कुछ दिन लालू से भी मिले थे। अटकलें लगाई जा रही हैं कि गुलाम गौस और उनके साथ कुछ और नेता राजद ज्वाइन कर सकते हैं। गुलाम गौस ने कहा भी था कि यह बिल मुस्लिम समुदाय की धार्मिक भावनाओं के खिलाफ है और अगर पार्टी इसका साथ देती है, तो वे अपने रास्ते अलग कर सकते हैं।

पार्टी छोड़ सकते हैं गुलाम गौस

लोजपा (रामविलास) के साथ-साथ जदयू ने भी व्हिप जारी कर अपने सांसदों को निर्देश दिया है कि वे संसद में बिल का समर्थन करेंगे। मतलब साफ है जदयू इस मुद्दे में भाजपा के साथ है और गुलाम गौस ने जैसा कहा था, वे पार्टी छोड़ सकते हैं।

हम इस वीडियो में मुख्य रूप से चार बिंदुओं पर बात करेंगे। पहला – वक्फ संशोधन बिल क्या है? पारित होने के बाद क्या बदलाव आएंगे। इसके पारित होने से बिहार की सियासत में क्या बदलाव आएगा और जदयू को इसका कितना और किस तरह का नुकसान होगा।

तो फिर चलिए शुरु करते हैं आज का विश्लेषण और बताते हैं कि क्यों भाजपा के रास्ते में चलते हुए सबसे अधिक कांटे जदयू को ही चुभ रहे हैं।

क्या है वक्फ संशोधन बिल 

सबसे पहले समझते हैं कि वक्फ संशोधन बिल है क्या और विवाद किस बात को लेकर है?

देखिए, वक्फ एक इस्लामिक परंपरा है, जिसमें कोई मुस्लिम अपनी संपत्ति मस्जिद, मदरसा, या गरीबों की भलाई के लिए दान कर देता है। यानी एक तरह की चैरिटी है। अब इस संपत्ति को संभालने के लिए एक संगठन की जरूरत है, उस संगठन या समिति को कहते हैं वक्फ बोर्ड। कई सालों से देश भर के मुसलमान इसमें पैसे या संपत्ति का दान कर रहे हैं। इस तरह आज की तारीख में भारत में वक्फ बोर्ड के पास करीब 9 लाख एकड़ जमीन है, जो सेना और रेलवे के बाद तीसरी सबसे बड़ी संस्था है, जिसे पास इतनी जमीन हैं। अस वक्फ बोर्ड के संचालन या नियंत्रण की जो पूरी प्रकिया है, वो 1995 के वक्फ कानून के तहत है। यानी 1955 का कानून के तहत ही भारत में वक्फ बोर्ड संचालित होता है। भाजपा की केंद्र की भाजपा सरकार इसी कानून में संसोधन करना चाहती है, जिसे लेकर मुस्लिम समुदाय में नाराजगी है।

क्या है वक्फ संशोधन विधेयक

नया बिल, जिसे वक्फ (संशोधन) विधेयक 2024 कहते हैं, यह अगस्त 2024 में संसद में पेश किया गया था। लेकिन तब यह पास नहीं हो सका था। इसे दोबारा आज यानी 2 अप्रैल को संसद में पेश किया जा रहा है। इस बिल में बड़े बदलाव प्रस्तावित हैं। जैसे—वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम सदस्यों को शामिल किया जाना है, जबकि अब तक इसमें केवल मुस्लिम सदस्य होते हैं। दूसरा, वक्फ की संपत्तियों का रजिस्ट्रेशन करना अनिवार्य होगा, अब तक वक्फ की संपत्तियों का रजिस्ट्रेशन जरूरी नहीं था। साथ ही इन संपत्तियों पर सरकार को अधिकार दिया जाएगा। सरकार का कहना है कि यह बिल पारदर्शिता लाएगा और भ्रष्टाचार रोकेगा। लेकिन मुस्लिम संगठनों का मानना है कि यह उनके धार्मिक अधिकारों पर हमला है। और इसलिए पूरे देश में मुस्लिम संगठन इस बिल का विरोध कर रहे हैं।

बिहार में सड़कों पर उतरे मुस्लिम संगठन

बिहार में भी मुस्लिम संगठन इस बिल के खिलाफ सड़कों पर उतर आए हैं। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्डने इसे “मुस्लिम विरोधी” करार दिया। बोर्ड के प्रवक्ता मौलाना सज्जाद नोमानी ने कहा है कि यह बिल वक्फ की संपत्तियों को खत्म करने की साजिश है। हम इसे किसी भी कीमत पर लागू नहीं होने देंगे।” पटना में 25 मार्च को AIMPLB ने बड़ा प्रदर्शन भी किया था। इसमें लालू यादव और तेजस्वी भी शामिल हुए थे। इमारत-ए-शरिया के मौलाना अहमद वली फैसल रहमानी ने भी कहा कि वक्फ हमारी धार्मिक पहचान का हिस्सा है। इसे छीनने की कोशिश बर्दाश्त नहीं होगी। इन संगठनों ने ईद पर काली पट्टी बांधकर विरोध करने की भी अपील की थी।

यानी पूरे देश सहित बिहार में भी इस बिल के खिलाफ प्रदर्शन हो रहे हैं। बड़ा विवाद नजर आ रहा है।

अब हम थोड़ा राजनीतिक पहलू पर भी आते हैं।

देखिए पूरे देश सहित बिहार के मुस्लिम भी कमोबेश भाजपा को वोट नहीं देते हैं। भाजपा को बिहार के मुसलमानों का वोट चाहिए भी नहीं, लेकिन जदयू का स्टैंड ऐतिहासिक रूप से सेक्युलर ही रहा है, तभी जदयू ईद के मौके से पहले इफ्तार पार्टियों का आयोजन करती है और मुसलमान विरोधी बयान कभी उनके पार्टी से नहीं आते हैं। इसी कारण से जदयू को थोड़ा बहुत मुस्लिम वोट बिहार में मिलता आया है।

इस तरह अब जब वक्फ संशोधन बिल को लेकर बिहार में विरोध और प्रदर्शन देखने को मिल रहे हैं तो भाजपा को इससे कोई नुकसान नहीं है, लेकिन जदयू के लिए यह झटका जरूर हो सकता है। खास कर गुलाम गौस जैसे नेता के पार्टी छोड़ देने से।

क्या है सीटों का हिसाब 

आपको हम सीटों के हिसाब से भी बता देते हैं। 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में जदयू 101 सीटों पर लड़ी थी और 71 सीटें जीतीं थी। इसमें 10-12 सीटेंसीमांचल और मिथिलांचल की मुस्लिम बहुल सीटें थी। जदयू की तरफ से 5 मुस्लिम विधायक जीते थे, जिनमें अब्दुल बारी सिद्दीकीअलीनगर से, फैसल अली जोकीहाट से, और नौशाद आलम ठाकुरगंज से जीते थे।

लेकिन 2020 में जदयू115 पर लड़ी और सिर्फ 43 पर ही जीत पाई। उसमें भी हुआ ये कि सिर्फ 2-3 सीटें ही मुस्लिम प्रभावित जीत पाने में सक्षम रही।और सबसे बड़ी बात, 43 में से एक भी मुस्लिम विधायक नहीं थे। 2015 में जहां जदयू को 25-30 प्रितशत मुस्लिम वोट मिले थे, वह 2020 में घटकर 10 प्रतिशत पर सिमट गया था। इस बार का वक्फ बिल विवाद जदयू से उसके मुस्लिम वोटरों को पूरी तरह छीन सकता है।

गुलाम गौस के अलावा ये नेता भी हैं नाराज

गुलानगौस के अलावा जदयू में कुछ और मुस्लिम नेता भी नाराज बताए जा रहे हैं। जैसे, विधायकमोहम्मद जमा खानऔरअली अशरफ फातमी। ये दोनों सीमांचल से हैं, जहां मुस्लिम वोटरों की संख्या 40-60% है। खबरें हैं कि ये नेता भी बिल के खिलाफ हैं और गुलाम गौस के साथ मिलकर कोई फैसला ले सकते हैं। हालांकि, अभी तक इन दोनों ने खुलकर कुछ नहीं कहा।

इसके अलावा, जदयू के कुछ EBC (अति पिछड़ा वर्ग) नेता भी असहज हैं। उन्हें लगता है कि नीतीश भाजपा के दबाव में उनकी बात नहीं सुन रहे। लेकिन अभी सिर्फ गुलाम गौस ने पार्टी छोड़ने की बात कही है। अगर नीतीश ने बिल का समर्थन किया, तो यह संख्या बढ़ सकती है। सूत्रों का कहना है कि RJD इन नेताओं से संपर्क में है और उन्हें अपनी पार्टी में लाने की कोशिश कर रही है।

दिलचस्प है कि एनडीए के दूसरे सहयोगी चिराग पासवान ने हाल ही में कहा था कि वे हिंदू-मुस्लिम राजनीति नहीं करते, लेकिन उनकी पार्टी व्हिप जारी कर सासंदों के कहा है कि सभी बिल के समर्थन में वोट करें।

भाजपा और राजद को होगा फायदा

इस पूरे प्रकरण में दो लोगों का फायदा है। एक है भाजपा और दूसरी है राजद। भाजपा को ध्रुवीकरण का फायदा मिलेगा। हिंदु समाज के वोट प्रतिशत में इजाफा करने का प्रयास है। दूसरा जब मुस्लिम समुदाय को अपने लिए किसी एक पार्टी का चयन करना हो, तो वे सबसे मजबूत की तरफ जाएंगे। और बिहार में वो पार्टी राजद है। इसलिए जो भी मुस्लिम नेता जदयू छोड़ेंगे, वे राजद में जाएंगे।