Sitaare Zameen Par Review: आमिर खान की मोस्ट अवेटेड फिल्म सितारे जमीन पर शुक्रवार को दुनियाभर के सिनेमाघरों में रिलीज हुई। फिल्म का रिव्यू सामने आ गया है। आइए, जानते हैं आखिर कैसी है बॉलीवुड के मिस्टर परफेक्शनिस्ट ये फिल्म।
कुछ साल पहले ‘तारे जमीन पर’ ने भारतीय सिनेमा में ऐसी छाप छोड़ी थी, जिसकी गूंज आज भी सुनाई देती है। यह दिल छू लेने वाली पहल थी, जिसने डिस्लेक्सिया जैसे विषय को मुख्यधारा की फिल्म में उठाकर उस पर बहस शुरू की थी।

Aamir Khan Sitaare Zameen Par Review: आमिर खान की मच अवेटेड फिल्म सितारे जमीन पर (Sitaare Zameen Par)आखिरकार शुक्रवार को दुनियाभर के सिनेमाघरों में रिलीज हुई। आमिर लंबे समय बाद स्क्रीन पर वापसी कर रहे हैं। इस बार वो जो फिल्म लेकर आए हैं वो लीक से हटकर है। सितारे जमीन पर एक ऐसी फिल्म है, जो देखने वालों को इमोशनल करेगी, उन्हें हंसाएंगी तो सीखाएंगी भी। डायरेक्टर आरएस प्रसन्ना ने इसे एक बेहतरीन फिल्म बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। 200 करोड़ के बजट वाली इस फिल्म आमिर के साथ जेनेलिया देशमुख और 10 न्यूकमर स्टार्स हैं। आइए, जानते हैं कैसी है आमिर खान की फिल्म सितारे ज़मीन पर.
क्या है फिल्म सितारे जमीन पर की कहानी
आमिर खान एक बार फिर एक अलग जोनर की फिल्म लेकर आए है। उनकी फिल्म सितारे जमीन पर रिलीज हो गई है और इसे पसंद भी किया जा रहा है। फिल्म की कहानी की बात करें तो एक फुटबॉल कोच गुलशन (आमिर खान) की पर बेस्ड है। ये कोच टैलेंटेड है, लेकिन कुछ बुरी आदतों का भी शिकार है, जिसकी वजह से आए दिन मुसीबत में फंस जाता है। एक बार तो ऐसा फंसता है कि मामला पुलिस से शुरू होता और हाई कोर्ट कर पहुंच जाता है। जज फैसला सुनाते हुए और उन्हें कम्युनिटी सर्विस के तौर पर न्यूरोडाइवर्जेंट लोगों को बास्केटबॉल सिखाने का काम दिया जाता है। क्या गुलशन इन न्यूरोडाइवर्जेंट लोगों को बास्टेबॉल सिखाने में कामयाब हो पाता है, वो इनसे कैसे डील करता है, कितनी दिक्कतें आती है... ये सब जानने के लिए आपको फिल्म देखनी होगी।
फिल्म सितारे जमीन पर का कैसा है डायरेक्शन
सितारे जमीन पर की कहानी फ्रांस की हिट फिल्म चैंपियंस का हिंदी अडाप्शन है। हालांकि, डायरेक्टर आरएस प्रसन्ना और दिव्या निधि शर्मा ने इस कहानी को इंडियन रंग और देसी तड़के के साथ पेश किया है। प्रसन्ना ने फिल्म में न्यूरोडाइवर्जेंट बच्चों का किरदार निभाने के लिए डाउन सिंड्रोम और ऑटिज्म से पीड़ित लोगों को कास्ट किया ताकि नेचुरल फीलिंग आ सके। हाालंकि, इनसे एक्टिंग कराना आसान बात नहीं थी, लेकिन फिर भी उन्होंने कड़ी मेहनत और बहुत ही सलीके से इन्हें स्क्रीन पर पेश किया। उनकी मेहनत वाकई पर्दे पर नजर आ रही है। फिल्म की कहानी भी दिल छू लेने वाली है। फिल्म में ऐसे कई सीन्स है, जो कभी हंसाते तो कभी आंखों में आंसू ला देते हैं। इसमें दिल को छू लेने वाला एक डायलॉग है- झगड़े में चाहें तुम जीतो या मैं, हारेगा तो हमारा रिश्ता ही।